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मेधा पाटकर मानहानि मामले में दोषी करार: वीके सक्सेना की लंबी कानूनी लड़ाई का फैसला

मेधा पाटकर : दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर एक पुराने आपराधिक मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक मेधा पाटकर को दोषी ठहराया है। करीब 20 साल पुराने इस मामले में अदालत ने पाटकर को दोषी करार दिया, जिससे उन्हें दो साल की जेल, जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है।

मेधा पाटकर

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 2000 से चल रहा है, जब मेधा पाटकर ने अपने खिलाफ और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। इसके बाद, एक टीवी चैनल पर सक्सेना के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए वीके सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ दो मामले दर्ज कराए थे। उस समय वीके सक्सेना अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

अदालत का फैसला

साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि यह साफ़ है कि आरोपी की हरकतें जानबूझकर की गईं और दुर्भावनापूर्ण थीं। अदालत ने कहा कि इसका उद्देश्य शिकायतकर्ता के नाम को खराब करना था और जनता की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा और साख को नुकसान पहुंचाना था। अदालत ने पाया कि मेधा पाटकर के बयान वीके सक्सेना को कायर बताते थे, देशभक्त नहीं, और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाना न केवल मानहानिकारक था, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने वाला भी था।

नर्मदा बचाओ आंदोलन और मेधा पाटकर

मेधा पाटकर 1985 में नर्मदा घाटी के पास रहने वाले आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, मछुआरों और उनके परिवारों के मुद्दों को उजागर करने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन के माध्यम से सुर्खियों में आईं। उन्होंने इस आंदोलन के माध्यम से विस्थापित लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी।

अन्य कानूनी विवाद

वीके सक्सेना पर 2002 में साबरमती आश्रम में सामाजिक कार्यकर्ता पर हमला करने का आरोप है। यह घटना गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बैठक के दौरान हुई थी। इसके लिए सक्सेना और अन्य के खिलाफ गैरकानूनी सभा, हमला, गलत तरीके से रोकना और आपराधिक धमकी देने के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी।

हाल के घटनाक्रम

पिछले साल, मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में धोखाधड़ी के एक मामले में पाटकर और 12 अन्य लोगों पर मामला दर्ज किया गया था। एफआईआर के अनुसार, पाटकर और अन्य ट्रस्टियों ने नर्मदा घाटी के लोगों के कल्याण के लिए उनके ट्रस्ट को दान देने के लिए लोगों को गुमराह किया।

मेधा पाटकर का दोषी ठहराया जाना इस लंबी कानूनी लड़ाई का एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह मामला न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। वीके सक्सेना और मेधा पाटकर के बीच यह कानूनी संघर्ष दिखाता है कि कैसे सामाजिक आंदोलनों और उनके नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए जा सकते हैं और उन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

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