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महाराष्ट्र में बीजेपी की जोड़तोड़ की राजनीति क्यों नहीं चली: महाविकास अघाड़ी की जीत के पांच प्रमुख कारण

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर महाविकास अघाड़ी की जीत ने बीजेपी की जोड़तोड़ की राजनीति को विफल कर दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (उद्धव ठाकरे की शिव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी) ने महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी) को पछाड़ते हुए शानदार सफलता हासिल की है। आइए समझते हैं, उन कारणों को जो महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई दिशा देते हैं।

महाराष्ट्र

1. स्थानीय मुद्दे और क्षेत्रीय अस्मिता

महाराष्ट्र के इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों की तुलना में स्थानीय मुद्दों और क्षेत्रीय अस्मिता को अधिक महत्व मिला। 2014 और 2019 के चुनावों में मोदी लहर का प्रभाव था, लेकिन इस बार मोदी का करिश्मा महाराष्ट्र में फीका पड़ गया। महाराष्ट्र में किसानों का ग़ुस्सा, प्याज के निर्यात प्रतिबंध, उर्वरकों की बढ़ी क़ीमतें जैसे मुद्दे अधिक प्रभावी रहे। मोदी ने महाराष्ट्र में रिकॉर्ड रैलियां कीं, लेकिन उनकी रैलियों का नतीजों पर खास असर नहीं पड़ा।

बीजेपी ने चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय मुद्दों ने इस प्रयास को विफल कर दिया। कोल्हापुर में देवेंद्र फडणवीस की ओर से शाहू महाराज बनाम संजय मंडलिक की लड़ाई को मोदी बनाम राहुल गांधी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश भी बेकार गई।

2. शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति

शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति जनता की सहानुभूति ने भी महाविकास अघाड़ी को फायदा पहुंचाया। शिव सेना और एनसीपी में फूट डालने की बीजेपी की कोशिशें उल्टी पड़ गईं। जनता ने बीजेपी की इस रणनीति को नकारते हुए उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति दिखाई। मोदी द्वारा शरद पवार और उद्धव ठाकरे की व्यक्तिगत आलोचना भी बीजेपी के खिलाफ गई और पवार-ठाकरे के प्रति सहानुभूति बढ़ाने वाली साबित हुई।

3. किसानों का रोष

महाराष्ट्र में किसानों का गुस्सा भी महाविकास अघाड़ी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्याज, कपास, और सोयाबीन की कीमतों के मुद्दे पर किसान नाराज थे। निर्यात प्रतिबंध के खिलाफ किसानों में भारी गुस्सा था। बीजेपी इस गुस्से को कम करने में असफल रही। उर्वरकों की बढ़ी कीमतें भी राज्य भर के किसानों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गईं, जिससे बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा।

4. सोशल इंजीनियरिंग: मराठा-दलित-मुस्लिम एकता

महाविकास अघाड़ी की सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति ने भी महायुति के खिलाफ काम किया। मराठा, दलित, और मुस्लिम समुदायों को एकजुट करने में महाविकास अघाड़ी सफल रही। मराठा आंदोलन का सीधा फायदा महाविकास अघाड़ी को हुआ, जबकि महायुति इस सोशल इंजीनियरिंग का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सकी। इसके अलावा, मुस्लिम मतदाताओं को भी महाविकास अघाड़ी ने अपनी ओर करने में सफलता पाई।

5. विपक्ष का एकजुट रहना

इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी के एकजुट रहने का भी बड़ा योगदान रहा। वंचित बहुजन अघाड़ी और एआईएमआईएम का प्रभाव नहीं दिखा, जिससे महाविकास अघाड़ी को वोटों के विभाजन की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। कांग्रेस, ठाकरे समूह, और पवार समूह के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर हो गए, जिससे महाविकास अघाड़ी को फायदा हुआ।

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की जीत ने बीजेपी की जोड़तोड़ की राजनीति को विफल कर दिया है। स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देना, शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति, किसानों का रोष, सोशल इंजीनियरिंग, और विपक्ष का एकजुट रहना – ये सभी कारक महाविकास अघाड़ी की जीत के प्रमुख कारण हैं। इस जीत का राज्य की आगामी विधानसभा चुनावों और नगर निगम चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

महाराष्ट्र की राजनीति में इस बदलाव से यह स्पष्ट हो गया है कि जोड़तोड़ की राजनीति लंबे समय तक टिक नहीं सकती, और जनता के वास्तविक मुद्दे ही चुनावों में निर्णायक साबित होते हैं।

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